आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद आत्मीयता का माधुर्य और आनंदश्रीराम शर्मा आचार्य
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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद
आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
मंदिर पहाड़ की चोटी पर था। फिर भी दर्शनार्थी ऊपर जा रहे थे। "दर्शन करना अवश्य है" इसलिए लोग बराबर चढ़ाई चढ़ते जा रहे थे। एक महात्मा जी भी थे, वह भी भगवान की मूर्ति के दर्शनों के लिए ऊँची-नीची घाटी चढ़ते जा रहे थे, पर थकावट के कारण उनका बुरा हाल था। इतनी चढ़ाई कैसे पार होगी, यह वे समझ नहीं पा रहे थे। बार-बार थककर बैठ जाते थे। भगवान के मिलन में आनंद है तो उसकी साधना में आनंद क्यों नहीं ? उनके मन में एक तर्क उठा-इस तर्क ने उनका मन ढीला कर दिया।
पीछे मुड़कर देखा तो एक आठ नौ वर्षीय बालिका भी पहाड़ की चढ़ाई चढ़ रही थी। उसकी पीठ पर दो वर्ष का एक बालक था, तो भी उनके मुख-मंडल पर थकावट का कोई चिन्ह नहीं था। हँस-मुख बालिका कभी बच्चे को थपथपाती, चूमती-चाटती और कभी नाराज-सी होकर उससे बात-चीत करती। बच्चा उसे शिकायत वाली मुद्रा में देखता तो बालिका कहती-"बुद्ध" और हँसती हुई फिर दुगुने उत्साह से चढ़ाई चढ़ने लगती है।
मन तो विचारों का भांडागार है, अभी थोड़ी देर पहले तर्क उठा था, अब वह कौतूहल में बदल गया। मेरे पास कोई बोझ नहीं, शरीर भी पुष्ट है फिर भी थकावट और इस नन्ही-सी बालिका की पीठ पर सवारी है, तो भी उसके मुख पर थकावट का कोई चिन्ह नहीं। उन्होंने पूछा-बालिके ! तुम इतना बोझ लिए चल रही हो, थकावट नहीं लगी क्या ?
"बोझ नहीं है बाबा !" लड़की ने महात्मा को चिढ़ाने वाली मुद्रा बनाकर कहा-यह मेरा भाई है देखते नहीं, इसके साथ अटखेली करने में कितना आनंद आता है, यह कहकर बालिका ने शिशु के कोमल कपोल चूमे और एक नव स्फूर्ति अनुभव करती हुई फिर चढाई चढ़ने लगी।
महात्मा जी ने अनुभव किया यदि भगवान को प्राप्त करने की साधना कठोर और कष्टपूर्ण लगती है तो यह दोष भगवान का नहीं, जीवन नीति का है। वस्तुतः लौकिक हो तो भी क्या ? वासना रहित और पवित्र जीवन बना रहता है तो कठिन कर्त्तव्य और कठिनाइयों से भरे जीवन में भी मस्ती का आनंद लिया जा सकता है। यही नहीं व्यक्ति के निर्माण और पूर्णता का लाभ भी इसी तरह हँसते थिरकते प्राप्त किया जा सकता है। अपने जीवन में इस सत्य की गहन अनुभूति के बाद तभी तो प्रसिद्ध वैज्ञानिक जूलियन हक्सले ने लिखा है कि व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए सौंदर्य से प्रेम, सुंदर व आश्चर्यजनक वस्तुओं के प्रति प्रेम भी आवश्यक है, क्योंकि उससे भावी जीवन में आगे बढ़ने की भावना जाग्रत होती है।
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